ब्रिटिश कम्पनी के अधीन गवर्नर जनरल

वारेन हेस्टिंग्ज 1717-85 ई. 

  • कम्पनी की आर्थिक कठिनाइयों को सुलझाना तथा उसके व्यापार को बढाना था। हेस्टिंग्ज को दूसरा क्लाइव कहा जा सकता है। क्लाइव ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को सुदृढ किया। हेस्टिंग्ज ने अपने साम्राज्य-विस्तार और प्रशासकीय सुधारों से इस पर सुदृढ भवन बना दिया।
  • हेस्टिंग्ज ही भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था।
  • इसका काल कम्पनी राज्य के विस्तार के साथ-साथ आन्तरिक सुधारों का भी काल है।
  • सन् 1773 ई. में रेग्यूलेटिंग ऐक्ट पारित हुआ, इसलिए हेस्टिंग्ज प्रथम गवर्नर जनरल बनकर भारत आया।

हेस्टिंग्ज की प्रारम्भिक कठिनाइयां
  • वारेन हेस्टिंग्ज को 1772 ई. में कर्टियर के पश्चात बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया था, उस समय भारत में अंग्रेजी कम्पनी की स्थिति अच्छी नही थी-

1. बंगाल में अराजकता- अकाल
2. द्वैध शासन
3. रिक्त कोष
4. विरोधियों द्वारा उत्पन्न समस्याऐं


हेस्टिंग्ज के सुधार शासन संबंधी सुधारः 
1. बंगाल में द्वैध शासन का अन्तः

  • हेस्टिंग्ज ने दोहरे शासन प्रबंध को समाप्त कर शासन सूत्र कम्पनी के अधिकार में ले लिया। दोनों नायब दीवानों रजा खां और शितबराय को पदच्युत कर दिया और उन पर मुकदमा चलाया।
  • कर वसूल करने के लिए प्रत्येक जिले में एक अंग्रेज अधिकारी नियुक्त कर दिया, जिसे कलेक्टर कहा जाता था। इसकी सहायता के लिए अनेक अधिकारी नियुक्त किये गये। कई जिलों पर एक अंग्रेज कमिश्नर भी नियुक्त किया।

2. नवाब का अन्तः

  • ब्ंगाल के नवाब नाजिमउद्दौला को शासन के उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया। उसकी पेंशन 32 लाख वार्षिक के स्थान पर 16 लाख रूपये कर दी।

3. भूमि-प्रबंध और मालगुजारी के सुधारः 

  • हेस्टिंग्ज ने लगान वसूली और भूमि प्रबंध के भी अनेक सुधार किये। जमींदारी प्रथा के स्थान पर भूमि का पंचवर्शीय प्रबंध लागू किया। कर निर्धारण करके वसूली का कार्य ठेकेदारों को दे दिया।
  • यह ठेकेदारी प्रथा अच्छी नही रही, क्योंकि ठेकेदार कृषकों से मनमाना कर वसूल करने लगे थे।

4. राजस्व समिति का गठनः

  • लगान वसूली कार्यक्रम को ठोस और उत्तम बनाने की दृष्टि से 1781ई. में नया परिवर्तन किया। उसने मुर्शिदाबाद के स्थान पर कलकत्ता को अपनी राजधानी बनाया राजकोष वहां स्थानान्तरित कर दिया।
  • राजस्व समिति का गठन किया तथा कर वसूली करने का सम्पूर्ण दायित्व प्रान्तीय गवर्नरों को सौंपा।
  • भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने के लिए कम्पनी के कर्मचारियों पर रिष्वत लेने तथा भेंट, उपहार आदि लेने पर प्रतिबंध लगा दिया। जनता की सम्पत्ति तथा सुरक्षा के लिए उचित प्रबंध किया। राज्य में चोर-डाकुओं का बडी सख्ती के साथ दमन किया। आर्थिक क्षेत्र में सुधारों के रूप में उसने अनावश्यक वैतनिक पदों को समाप्त किया। राजकोष भरने हेतु इलाहाबाद, कडा और मानिकपुर के जिलों को अवध के नवाब को 60 लाख में बेंच दिया।
  • हेस्टिंग्ज का कार्य कठिन था। एक तो बंगाल में कामचलाउ प्रशासन की व्यवस्था करनी थी, दूसरा कम्पनी को, जो एक व्यापारिक इकाई थी, भारतीय रीति-रिवाजों से अनभिज्ञ थी, उसे एक प्रशासनिक इकाई बनाना



लार्ड लिटन 1876-80 

  • 1876 ई. में लिटन वायसराय बनकर भारत आया। वह एक सुप्रसिद्ध उपन्यासकार, निबन्ध एवं साहित्यकार था। साहित्य के इतिहास में इसे ‘ओवन मैरिडिथ‘ के नाम से जाना जाता था।
  • लिटन मुक्त व्यापार को प्रोत्साहन देते हुए इंग्लैण्ड की सूती मिलों को लाभ पहुंचाने के उद्देष्य से कपास पर लगे आयात शुल्कों को कम कर दिया। उसने लगभग 29 वस्तुओं पर से जिनमें चीनी, लट्ठा और विस्थूला इत्यादि प्रकार का कपडा सम्मिलित था, पर से आयात शुल्क हटा दिया।
  • राज्य सचिव लॉर्ड सैलिसबरी था।

वित्तीय सुधारः

  • लार्ड लिटन के समय मेयों द्वारा प्रारम्भ की गई वित्तीय विकेन्द्रीकरण की नीति चलती रही तथा इस दिशा में एक ओर कदम उठाते हुए, प्रान्तीय सरकारों को साधारण प्रांतीय सेवाओं जिनमें भूमिकर, उत्पादन कर, आबकारी, टिकटे, कानून और व्यवस्था, साधारण प्रशासन इत्यादि सम्मिलित थी, पर व्यय करने का अधिकार दे दिया गया।
  • सर जॉन स्ट्रेची जो वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के वित्तीय सदस्य थे, ने सभी प्रान्तों में नमक कर की दर बराबर करने का प्रयत्न किया।

1876-78 का अकाल 

  • 1876 से 78 ई. उसके समय में बंबई, मद्रास, हैदराबाद, मैसूर, पंजाब तथा मध्यभारत के कुछ भाग में अकाल पडा। लगभग 50 लाख लोग भूख के कारण कालकल्वित हुए।
  • लिटन ने अकाल के कारणों की जांच के लिए रिचर्ड स्टृेची की अध्यक्षता में एक अकाल आयोग की स्थापना की।
  • आयोग ने असमर्थ व्यक्तियों की सहायता के लिए प्रत्येक जिले में एक अकाल कोष खोलने का सुझाव दिया। अकाल की भयानक स्थिति के बाद दिल्ली 1 जनवरी 1877 को ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को ‘केसर-ए-हिन्द‘ की उपाधि से सम्मानित किया गया।


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