भारतीय इतिहास को जानने के स्रोत


  • इतिहासकारों ने प्राचीन भारतीय इतिहास को तीन भागों में विभाजित किया है।

  1. प्रागैतिहासिक कालः- वह काल जिसके लिए लिखित साधन अनुपलब्ध हैं एवं जिसमें मानव जीवन पूर्णतया सभ्य नहीं था।
  2. आद्य ऐतिहासिक कालः- वह काल जिसके लिए लिखित इतिहास तो उपलब्ध है, लेकिन उसे पढ़ा एवं समझा नहीं जा सकता है। हड़प्पा सभ्यता एवं वैदिक सभ्यता का अध्ययन इसी के अंतर्गत किया जाता है।
  3. ऐतिहासिक काल:- जिस काल का मानव किसी न किसी प्रकार की लिपि से परिचित था और वह लिपि पढ़ी जा चुकी हो अर्थात् मानव के जिन क्रिया-कलापों का हमें लिखित विवरण प्राप्त होता है और वह विवरण पढ़ा जा चुका हो उसे हम इतिहास कहते हैं। 5वीं शताब्दी ई.पू. से लेकर वर्तमान तक का अध्ययन इसी के अन्तर्गत किया जाता है।

भारतीय इतिहास जानने के स्रोतों को तीन भागों में बांटा जाता हैः-


  • पुरातात्विक स्रोत
  • साहित्यिक स्रोत, तथा
  • विदेशी यात्रियों के विवरण।

अ. पुरातात्विक स्रोतः

  • प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के लिए पुरातात्विक सामग्रियां सर्वाधिक प्रामाणिक मानी जाती हैं।
  • अभिलेखों में अधिकारियों और जनता के लिए जारी किए गये सामाजिक, आर्थिक व प्रशासनिक राज्यादेशों एवं निर्णयों की सूचना रहती है, जैसे- अशोक के अभिलेख
  • द्वितीय श्रेणी के वे आनुष्ठानिक अभिलेख हैं, जिन्हें बौद्ध, जैन, वैष्णव, शैव आदि सम्प्रदायों के मतानुयायियों ने स्तंभों, प्रस्तर फलकों, मंदिरों एवं प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण कराया।
  • सर्वाधिक प्राचीन अभिलेख 2500 ई.पू. के हडप्पाकालीन हैं, जो मुहरों पर भावचित्रात्मक लिपि में अंकित हैं। इनका प्रामाणिक पाठ अभी तक असंभव बना हुआ है।
  • सर्वाधिक प्राचीन पठनीय अभिलेख मौर्य सम्राट अशोक के हैं, जो प्राकृत भाषा में हैं। पूर्व हैदराबाद राज्य में स्थित मास्की, गुर्जरा (मध्य प्रदेश), उड्डेगोलम, नेट्टूर से प्राप्त अभिलेखों में अशोक के नाम का स्पष्ट उल्लेख मिलता हैं। उसे देवताओं का प्रिय ‘प्रियदर्शी’ (पियदस्सी) राजा कहा गया है।
  • ये अभिलेख पाषाण शिलाओं, स्तम्भों, ताम्रपत्रों, दीवारों, मुद्राओं आदि पर पाये गये है।
  • अशोक के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है। यह लिपि बांयें से दांये लिखी जाती थी।
  • पष्चिमोत्तर भारत से मिले अशोक के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में हैं, जो दांयें से बांये लिखी जाती थी।
  • पाकिस्तान व अफगानिस्तान से प्राप्त अशोक के शिलालेखों में यूनानी व अरामाइक लिपियों का प्रयोग किया गया है।
  • सबसे पहले 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप को अशोक के अभिलेखों को पढ़ने में सफलता मिली।

प्रशस्ति अभिलेखों में प्रसिद्ध हैं- 

  • उडीसा के खारवेल का हाथी गुम्फा अभिलेख
  • शक क्षत्रप रुद्रादामन का गिरनार अभिलेख
  • सातवाहन नरेश पुलुमावी का नासिक गुहालेख
  • समुद्रगुप्त का प्रयाग स्तम्भ लेख
  • मालवराज यशोधर्मन का मन्दसौर अभिलेख
  • चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय का ऐहोल अभिलेख
  • प्रतिहार राजा भोज का ग्वालियर अभिलेख
  • गैर-राजकीय अभिलेखों में यवन राजदूत हेलियोडोरस का बेसनगर (विदिशा) से प्राप्त गरुड स्तम्भ लेख विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिससे द्वितीय शताब्दी ई.पू. के मध्य भारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण मिलता है।
  • एरण से प्राप्त वाराह प्रतिमा पर हूणराज तोरमाण का लेख अंकित है।
  • भूमि अनुदान-पत्र प्रायः ताँबे की चादरों पर उत्कीर्ण है। इनमें राजाओं और सामन्तों द्वारा भिक्षुओं, ब्राह्मणों, मंदिरों, विहारों, जागीरदारों और अधिकारियों को दिए गये गांवों, भूमियों और राजस्व सम्बन्धी दानों का विवरण है। ये प्राकृत, संस्कृत, तमिल एवं तेलुगू भाषाओं में लिखे गये हैं।
  • विदेशों से प्राप्त अभिलेखों में एशिया माइनर में बोगजकोई नामक स्थल से लगभग ई.पू. 1400 का संधिपत्र अभिलेख मिला है, जिसमें मित्र, वरुण, इंद्र व नासत्य नामक वैदिक देवताओं के नाम उत्कीर्ण हैं।
  • पर्सिपोलिस व बेहिस्तून अभिलेखों से यह ज्ञात होता है कि ईरानी सम्राट दारा प्रथम ने सिंधु नदी घाटी पर अधिकार कर लिया था।

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