राजस्थान के प्रमुख साहित्यकार




डॉ. सीतारात लालसः

बाडमेर जिले के सिरवाड़ी ग्राम में 25 नवम्बर, 1912 को जन्म हुआ। राजस्थानी भाषा का शब्दकोष नामक ग्रंथ के रचयिता अमरसेवी श्री लालस मूलतः जोधपुर के नरेवा ग्राम के निवासी थे। इसमें दस जिल्दों में दो लाख से अधिक शब्दों का यह राजस्थानी शब्दकोष अमर ग्रन्थ तैयार किया होगा। इस महान् उपलब्धि के कारण ही एनसाइक्लोपिडिया ब्रिटेनिका ने ‘श्री लालस’ को ‘राजस्थानी जुबां की मशाल’ कहकर संबोधित किया।
राजस्थानी साहित्य अकादमी ने 1973 ई. में उन्हें साहित्य मनीषी, 1976 ई. में जोधपुर विश्वविद्यालय ने डी. लिट् की मानद उपाधि तथा भारत सरकार ने 26 जनवरी, 1977 को पद्मश्री के अलंकरण से विभूषित किया। 29 दिसंबर 1986 को उनका जोधपुर में स्वर्गवास हो गया।



नागरीदास ‘सावंतसिंह’

किशनगढ के राजा राजसिंह के पुत्र सावंतसिंह ने नागरीदास के नाम से 77 ग्रंथों की रचना की। इनका जन्म वि.सं. 1726 में हुआ। ये वल्लभ सम्प्रदाय के प्रसिद्ध कवि माने जाते हैं। ये प्रेम एवं श्रृंगार के कवि थे। इन्होंने सरल भाषा में राधा और कृष्ण की प्रेम लीलाओं का वर्णन किया हैं। इनकी रचनाओं में सिंगार सागर, गोपीप्रेम प्रकाश, ब्रज बैकुण्ठ तुला, ब्रजसार, भोरलीला, विहार चंद्रिका, जुगल रस माधुरी, गोधन आगमन, दोहन आनंद, फागविलास, ग्रीष्म बहार, गोपीबन विलास, अरिलाष्टक, सदा की मांझ, वर्षा ऋतु की मांझ, रामचरित माला आदि। इन्होंने राधाजी के बणी-ठणी रूप की कल्पना की तथा उसके चित्र बनाये जिनसे किशनगढ की चित्रशैली का विकास हुआ।
जहां कलह तहां सुख नहीं, कलह सुखन को सूल।
सबै कलह इक राज में, राज कलह को मूल।।


कन्हैयालाल सेठियाः

इनका जन्म 1919 ई. में सुजानगढ, चुरू में हुआ। वे आधुनिक काल के हिंदी और राजस्थानी भाषा के कवि है। इनकी कविता ‘पाथल और पीथल’ राष्ट्र प्रसिद्ध रचना है। उनके ‘लीलठांस’ काव्य संग्रह को 1976 में केन्द्रीय साहित्य अकादमी ने पुरस्कार दिया। ‘निरपत्त आंगणियु केशरिया बानां पह्रया रोहिडा’, ‘जौहर रा साखी खेजडी’ में शौर्य एवं बलिदान को उजागर किया है।
‘धरती धोरां री’ से सेठी जी की प्रसिद्ध रचना है। धरती धोरा री पर राजस्थान के प्रसिद्ध कलाकार कौशल भार्गव ने नृत्य नाटिका के माध्यम से देश-विदेश में राजस्थान का भव्य प्रदर्शन किया।
सेठिया जी ने सामन्ती जुल्म के खिलाफ ‘अग्निवीणा’ और ‘किन घडियों में बेसुध सोये मारवाड के सपूत’ युवा शक्ति को ललकारा है। जमीन रो धणी कुणी, मींझर और तुम्हें सौगन्ध है सिरोही के बीरों की में बुनियादी समस्याओं की ओर इंगित किया है। इन्हें अनेक साहित्यिक पुरस्कारों के साथ पद्मविभूषण 2004 एवं पद्म श्री भी मिल चुके है। इनका 2008 में निधन हो गया।


कोमल कोठारीः 

जन्म 1929 ई. में कपासन गांव में हुआ। वे रूपायन संस्थान बोरूंदा के निदेशक तथा राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष रहे। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से अलंकृत किया गया। कोमल कोठारी ने राजस्थान लोकगीत, कथाओं का संकलन एवं शोध कार्य किया। राजस्थानी साहित्य में किये गये कार्य के लिए उन्हें फैलोशिप मिली। उन्होंने 1952 में जोधपुर से प्रकाशित मासिक ‘ज्ञानोदय’ एवं उदयपुर से प्रकाशित साप्ताहिक ‘ज्वाला’ का संपादन किया। 2004 में कोमलदा का निधन हो गया। सन् 1983 में पदमश्री से सम्मानित किया गया।


दुरसा आढाः

जन्म वि.सं. 1592 में मारवाड के धूंदला गांव में हुआ। इनके पिता का नाम मेहा आढा था। ये अकबर के दरबारी कवि थे। अकबर ने इन्हें लाख पसाव दिया। आबू के अचलेष्वर मंदिर में नंदी के पास इनकी पीतल की प्रतिमा लगी हुई है। इनकी रचनाओं में विरूद छिहतरी, किरतार बावनी, चालकनेस माताजी रो छंद, अजाजी री भूचरमोरी री गजगत, मानसिंह जी रा झूलणा आदि प्रमुख रचनाएं है।

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